एकांतिक वार्तालाप में श्री प्रेमानंद महाराज से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया: “विचार कब खत्म होते हैं? मन शांत होना चाहता है, लेकिन विचार रुकते नहीं।”
इस पर गुरुदेव ने समझाया कि जब तक हमारे अंदर वासनाएं रहेंगी, तब तक विचारों का सिलसिला चलता रहेगा। वासनाएं चित्त में परत दर परत जमा होती हैं, और जब तक चित्त निर्विकार नहीं हो जाता, तब तक विचारों का प्रवाह बना रहता है।
चित्त निर्मल होने पर ही मिलता है भगवान का साक्षात्कार
गुरुदेव ने कहा कि चित्त और मन एक ही हैं। जब चित्त निर्मल हो जाता है, तो भगवान का साक्षात्कार स्वतः हो जाता है। हमारे पिछले जन्मों के पाप, गंदे आचरण और अच्छे आचरण सभी का लेखा-जोखा चित्त में जमा होता है। जब तक यह पूरी तरह से डिलीट नहीं हो जाता, तब तक भगवान की अनुभूति नहीं होती।
नाम जप से वासनाओं का नाश
श्री प्रेमानंद महाराज ने बताया कि नाम जप करने से वासनाएं धीरे-धीरे नष्ट होती हैं। प्रत्येक नाम जप हमारे अंदर की वासनाओं को कमजोर करता है। जब इच्छाएं खत्म हो जाती हैं, तो परम शांति मिलती है। यह शांति इतनी गहरी होती है कि इसे वाणी से बयान नहीं किया जा सकता।
भोग और कामनाओं से मुक्ति का मार्ग
गुरुदेव ने समझाया कि भोग और कामनाएं हमारे आनंद को नष्ट करती हैं। कोई भी भोग करने के बाद अंदर एक अतृप्ति और अशांति रह जाती है। यदि भोगों का त्याग कर दिया जाए, तो असली मस्ती और आनंद जागृत हो जाता है। यह आनंद हमारे चैतन्य स्वरूप से जुड़ा होता है।
तुलसीदास जी का अनुभव: राम का साक्षात्कार
गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब राम का साक्षात्कार किया, तो उन्होंने कहा:
“जा की कृपा लवलेस दे, मति मंद तुलसी दास हो पायो परम विश्राम।“
यह परम विश्राम तभी मिलता है जब हमारा हृदय निर्मल हो जाता है और भोगों की इच्छा समाप्त हो जाती है।
डिस्क्लइमर [ disclaimer ] श्री पूज्य गुरुवर्य प्रेमानंद जी महाराज जी विश्व के मानवता कल्याण के लिए पर्वत इतने बढ़े ज्ञान का अमृत दे रहे है.. वेबसाइट की माध्यम से वही ज्ञान प्रसार लोगों को देना का काम एक चींटी की भाती प्रयास कर रहा हूं.. श्री गुरुवर्य महाराज के ज्ञान प्रसार के लिए बल प्रदान करे..राधे..राधे..
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