श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन जीवन को आध्यात्मिक और सात्विक मार्ग पर ले जाने का एक अनमोल मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे सिखाते हैं कि गुरु की प्राप्ति प्रारब्ध से नहीं, बल्कि भगवान की कृपा से होती है। प्रारब्ध में केवल शुभ और अशुभ कर्मों का फल मिलता है, लेकिन संत या गुरुदेव का मिलना ईश्वर की विशेष कृपा का परिणाम है। इस लेख में हम उनके इस संदेश को विस्तार से समझेंगे और एक भक्त की जिज्ञासा के जवाब में दिए गए उनके उपदेशों पर चर्चा करेंगे, जिसमें भगवत प्राप्ति, सात्विक जीवन, और गृहस्थ धर्म की महत्ता पर जोर दिया गया है।
गुरु की प्राप्ति: कृपा का फल
श्री प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं, “मोह भाव भरोष हनुमंता, बिनु हरि कृपा मिले नहिं संता”। अर्थात्, बिना भगवान की कृपा के संत या गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। प्रारब्ध में दो प्रकार के कर्म होते हैं—शुभ कर्म, जिनका फल सुख है, और अशुभ कर्म, जिनका फल दुख है। लेकिन गुरुदेव का मिलना भाग्य या प्रारब्ध का खेल नहीं, बल्कि हरि कृपा का परिणाम है।
वे बताते हैं कि गुरु की प्राप्ति के बाद साधना शुरू होती है। गुरु की कृपा से साधना परिपूर्ण होती है, और साधना के पूर्ण होने पर भगवत प्राप्ति हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया भगवान की कृपा पर निर्भर है। इसलिए, हमें सदा नाम जप, प्रार्थना, और सत् कर्म के माध्यम से ईश्वर की कृपा अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए।
भक्त की जिज्ञासा और महाराज जी का मार्गदर्शन
पंजाब के एक भक्त, गौरव जी, ने श्री प्रेमानंद जी महाराज से अपनी आध्यात्मिक और गृहस्थ जीवन की जिज्ञासा साझा की। उन्होंने बताया कि उन्हें मंत्र दीक्षा मिल चुकी है, और वे रोजाना माला जप और 84 जी का पाठ करते हैं। वे निकुंज जाना चाहते हैं, लेकिन उनकी सात महीने पहले हुई शादी के बाद उनकी धर्मपत्नी के साथ गहरी आसक्ति हो गई है। उन्हें एक-दूसरे को खोने का डर रहता है, और अब वे एक-दूसरे की मन की बात भी समझने लगे हैं।
इसके जवाब में महाराज जी ने कहा, “कोई बात नहीं, उसमें भगवत भाव रखो और धर्मपूर्वक विषय सेवन करो।” उन्होंने सलाह दी कि नाम जप करें, माता-पिता की सेवा करें, और समाज में किसी भी जीव को कष्ट में देखकर हृदय द्रवित होकर उसका परोपकार करें। यह सत् कर्म और भगवत भाव ही भगवत प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
महाराज जी ने जोर दिया कि पति-पत्नी का प्रेम अहोभाग्य है। वे कहते हैं, “हमारे समाज में लोग अपनी पत्नी या पति से प्यार करें, पराई स्त्री या पुरुष से गंदा आचरण न करें।” यदि पहले कोई गलती हुई हो, तो उसे स्वीकार कर छोड़ दें। गृहस्थ धर्म में पति-पत्नी का प्रेम और धर्मयुक्त जीवन ही सच्चा सुख देता है।
गृहस्थ धर्म और सात्विक जीवन
महाराज जी सिखाते हैं कि गृहस्थ जीवन में प्रेम और विश्वास सबसे महत्वपूर्ण हैं। पति-पत्नी का प्रेम न केवल गृहस्थ धर्म का आधार है, बल्कि यह समाज को भी मजबूत बनाता है। वे कहते हैं, “अपनी पत्नी से प्यार करो, अपने पति से प्यार करो।” अनैतिक संबंध, व्यभिचार, और गंदे आचरण को त्यागकर सात्विक जीवन जिएं। धर्मयुक्त कमाई और परोपकार से जीवन में आनंद और शांति आती है।
वे यह भी कहते हैं कि नाम जप और अच्छे आचरण से जीवन सार्थक बनता है। भगवान का नाम जपने से मन शुद्ध होता है, और परोपकार से आत्मा को सुकून मिलता है। हनुमान चालीसा, रामचरितमानस, या अन्य स्तोत्रों का नियमित पाठ मन को शांति और आत्मा को बल देता है।
जीव दया और पवित्रता का महत्व
महाराज जी बार-बार जीव दया की शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि हर जीव में परमात्मा का अंश है। चाहे वह इंसान हो या कोई अन्य प्राणी, सभी जीव जीना चाहते हैं। जीव हिंसा, मांसाहार, शराब, और अनैतिकता पाप कर्म हैं, जो हमें दुख और विपत्ति की ओर ले जाते हैं। वे कहते हैं, “जो जीव को काटकर खाते हो, वही काल तुम्हें काटेगा।” इसलिए, हमें शाकाहारी जीवनशैली अपनानी चाहिए और सभी जीवों के प्रति दया का भाव रखना चाहिए।
पवित्रता और संयम में वह शक्ति है, जो हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनाई। तप बल और सात्विक आचरण ही हमें सच्ची सफलता और ईश्वर की कृपा दिलाते हैं। महाराज जी की सलाह है कि गंदे आचरण को त्यागकर, नाम जप, प्रार्थना, और सेवा भाव को अपनाएं।
जीवन को आनंदमय बनाने का सूत्र
महाराज जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन एक अनमोल उपहार है, लेकिन यह विपत्तियों और संघर्षों से भरा है। यदि हम पाप कर्म करते हैं, तो यह दुख को और बढ़ाता है। नाम जप, सत् कर्म, और परोपकार ही वह मार्ग है, जो हमें सच्चे आनंद की ओर ले जाता है। वे कहते हैं, “अच्छे आचरण करो, हर जीव की सेवा करो, तब तुम्हारा मंगल होगा।”
सत्संग, ध्यान, और प्रार्थना हमें ईश्वर से जोड़ते हैं। माता-पिता की सेवा, समाज में परोपकार, और सात्विक जीवन अपनाकर हम अपने कर्मों को शुद्ध कर सकते हैं। यह जीवन को न केवल सुखमय बनाता है, बल्कि हमें भगवत प्राप्ति के करीब भी ले जाता है।
निष्कर्ष
श्री प्रेमानंद जी महाराज का संदेश हमें सिखाता है कि गुरु की प्राप्ति भगवान की कृपा से होती है, और सत् प्रयास, नाम जप, और पवित्रता ही सच्ची सफलता का मार्ग है। पति-पत्नी का प्रेम, जीव दया, और धर्मयुक्त जीवन गृहस्थ धर्म का आधार है। पाप कर्मों से बचें, क्योंकि वे दुख और विपत्ति लाते हैं। नाम जप, सत्संग, और परोपकार अपनाकर हम अपने जीवन को आनंदमय और मंगलमय बना सकते हैं। यह मार्ग हमें न केवल स worldly सुख देता है, बल्कि भगवत प्राप्ति के द्वार भी खोलता है। राधे-राधे!
डिस्क्लइमर [ disclaimer ] श्री पूज्य गुरुवर्य प्रेमानंद जी महाराज जी विश्व के मानवता कल्याण के लिए पर्वत इतने बढ़े ज्ञान का अमृत दे रहे है.. वेबसाइट की माध्यम से वही ज्ञान प्रसार लोगों को देना का काम एक चींटी की भाती प्रयास कर रहा हूं.. श्री गुरुवर्य महाराज के ज्ञान प्रसार के लिए बल प्रदान करे..राधे..राधे..
ये भी जरूर पढ़े…
श्री प्रेमानंद महाराज: मन करता है कि घर छोड़कर बाबा जी बन जाऊं
मैं अथीथ नहीं भूल पाती..महिला के इस सवाल पर महाराज का जवाब
गंदी बातों से बच्चों को कैसे बचाएं महाराज जी की उच्चतम सलाह
श्री प्रेमानंद महाराज:मृत्यु भय हर समय जीवन में लगा रहता है?
माता-पिता को नशे में पीटना यह गलत आदतें अब छूट गई है,लेकिन आगे यह गलतियां ना हो इसके लिए क्या करें।