एकांतिक वार्तालाप में एक व्यक्ति ने श्री प्रेमानंद महाराज से प्रश्न किया, “महाराज जी, आपके सत्संग से यह ज्ञात हुआ कि हमारी अंतिम मंज़िल मृत्यु ही है। तो क्या आत्मा केवल परमात्मा की प्राप्ति के लिए इस संसार में आती है?”
महाराज जी ने उत्तर दिया:
“मनुष्य योनि ही एकमात्र मार्ग है जिससे आत्मा परमात्मा की प्राप्ति कर सकती है। यदि यह अवसर खो दिया, तो पुनः 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा, जहां भजन संभव नहीं।”
मनुष्य जीवन का मूल्य और उद्देश्य
भगवान ने कृपा कर हमें मनुष्य देह दी है ताकि हम सत्संग, साधना और भजन द्वारा परमात्मा को प्राप्त कर सकें। लेकिन संसार के मोह और परिवार के आकर्षण में पड़कर हम इस सत्य को भूल जाते हैं।
- मनुष्य जीवन अत्यंत संघर्षमय है। सुख-दुख, बीमारी, और समस्याएँ हमें सतत विचलित करती हैं।
- जब शरीर स्वस्थ होता है, तब ही भजन संभव है। बीमारी या संकट के समय केवल शरीर की पीड़ा का ही चिंतन होता है, भगवान का नहीं।
- अतः यावत स्वस्थ मदं कलेवरं, यावत जरा दूरं अर्थात जब तक शरीर स्वस्थ है और वृद्धावस्था नहीं आई, तब तक भगवान का भजन कर लेना चाहिए।
भगवान का आश्रय और नाम जप क्यों आवश्यक है?
महाराज जी कहते हैं:
“यदि तुम पाप कर्म करोगे, तो चाहे जितना दान-पुण्य कर लो, वह तुम्हें पाप के कष्टों से नहीं बचा सकता। भजन का सहारा लो, ताकि जीवन के संघर्ष तुम्हें विचलित न कर सकें।”
- नाम जप से मानसिक शक्ति बढ़ती है।
- भगवान की शरण में जाने से जीवन के कष्ट कम होते हैं।
- भजन करने से आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है।
कैसे करें निरंतर भगवान का स्मरण?
- अपने दिनचर्या में “राधा राधा” नाम जप को सम्मिलित करें।
- चलते-फिरते, कार्य करते समय मन ही मन जप जारी रखें।
- जबान के अग्र भाग को ऊपर के तालू से लगाकर जप करें, जिससे यह स्वाभाविक हो जाएगा।
- धीरे-धीरे यह साधना आपकी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन जाएगी।
समय रहते जाग जाएं!
यदि इस मानव जीवन को व्यर्थ गंवा दिया, तो अगली बार मनुष्य योनि मिलेगी या नहीं, इसका कोई भरोसा नहीं। इसीलिए, अभी से भजन, साधना और नाम जप को अपनाएं।
महाराज जी कहते हैं:
“यह जीवन संघर्षमय है, लेकिन नाम जप से हम इस संघर्ष से मुक्त होकर परमात्मा की ओर अग्रसर हो सकते हैं।”
तो आज ही से शुरू करें भगवान का स्मरण और अपने जीवन को धन्य बनाएं!
डिस्क्लइमर [ disclaimer ] श्री पूज्य गुरुवर्य प्रेमानंद जी महाराज जी विश्व के मानवता कल्याण के लिए पर्वत इतने बढ़े ज्ञान का अमृत दे रहे है.. वेबसाइट की माध्यम से वही ज्ञान प्रसार लोगों को देना का काम एक चींटी की भाती प्रयास कर रहा हूं.. श्री गुरुवर्य महाराज के ज्ञान प्रसार के लिए बल प्रदान करे..राधे..राधे..
ये भी जरूर पढ़े…
श्री प्रेमानंद महाराज: मन करता है कि घर छोड़कर बाबा जी बन जाऊं
मैं अथीथ नहीं भूल पाती..महिला के इस सवाल पर महाराज का जवाब
गंदी बातों से बच्चों को कैसे बचाएं महाराज जी की उच्चतम सलाह
श्री प्रेमानंद महाराज:मृत्यु भय हर समय जीवन में लगा रहता है?
माता-पिता को नशे में पीटना यह गलत आदतें अब छूट गई है,लेकिन आगे यह गलतियां ना हो इसके लिए क्या करें।