क्या हम किसी को अपनी आयु दे सकते हैं? श्री प्रेमानंद महाराज का उत्तर

मनुष्य के मन में कई बार यह प्रश्न उठता है कि क्या हम अपनी आयु किसी और को दे सकते हैं? यदि हां, तो उसकी विधि क्या होगी? इसी जिज्ञासा को लेकर एक भक्त ने श्री प्रेमानंद महाराज से यह सवाल किया। इस पर महाराज जी ने जो उत्तर दिया, वह जीवन के गूढ़ सत्य को समझाने वाला था।

भगवान ही कर सकते हैं जीवन-मरण का निर्णय

महाराज जी ने स्पष्ट किया कि जीवन और मरण का निर्णय केवल भगवान के हाथ में होता है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से अपनी उम्र किसी और को नहीं दे सकता। यह केवल भगवान ही कर सकते हैं।

उन्होंने एक लोक प्रचलित उक्ति का उदाहरण दिया:

“जो विधना ने लिख दिया छठी राव के अंक, राई घटे न तिल बढ़े रहरे जीव निशंक।”

अर्थात, जो विधाता ने प्रारब्ध में लिख दिया है, वह न तो कम हो सकता है और न ही बढ़ सकता है। इस पर किसी भी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं है।

रामायण से उदाहरण

श्री प्रेमानंद महाराज ने रामायण का उल्लेख करते हुए बताया कि यदि किसी की आयु बढ़ाई जा सकती, तो महापुरुष और ऋषि-मुनि ऐसा अवश्य करते। उन्होंने दशरथ जी के मरण और राम जी के 14 वर्ष के वनवास का उदाहरण दिया। जब भगवान राम को वनवास जाना पड़ा, तब बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों ने भी उनकी रक्षा नहीं कर पाई। यदि किसी की आयु हस्तांतरित की जा सकती, तो महर्षि वशिष्ठ जैसे विद्वान और समर्थ व्यक्ति इसे संभव बना सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

जीवन के कष्ट और उसका महत्व

महाराज जी ने बताया कि भगवान श्रीराम और माता सीता को 14 वर्षों तक नंगे पैर वन में रहना पड़ा। यह अत्यंत कठिन था, लेकिन फिर भी यह नियति थी। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ 14 दिन भी किसी घने वन में बिना सुविधा के नहीं रह सकते, तो सोचिए भगवान राम और माता सीता ने कितने कष्ट सहे होंगे।

इस संदर्भ में एक और पंक्ति का उल्लेख किया गया:

“भरत भावी प्रबल बिलख कयो मुनि नाथ, हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ।”

अर्थात, हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश – सब विधि के हाथ में है। कोई भी व्यक्ति इन चीजों को बदल नहीं सकता।

किसी की उम्र बढ़ाने का उपाय संभव नहीं

महाराज जी ने अंत में स्पष्ट किया कि जिसकी जितनी उम्र होती है, वह उतनी ही जीता है। यह विधि का विधान है, जिसे बदला नहीं जा सकता। लाख उपाय कर लें, लेकिन मृत्यु से बचना संभव नहीं है।

निष्कर्ष

  1. आयु का हस्तांतरण संभव नहीं है, क्योंकि यह केवल भगवान के हाथ में होता है।
  2. जीवन-मरण विधि के हाथ में है, जिसे कोई भी व्यक्ति बदल नहीं सकता।
  3. धर्मग्रंथों में भी यह स्पष्ट किया गया है कि नियति से बाहर जाकर कुछ नहीं किया जा सकता।
  4. हमारे कर्तव्यों का पालन करना ही सही मार्ग है, बजाय इस सोच के कि हम किसी की उम्र बढ़ा सकते हैं।

डिस्क्लइमर [ disclaimer ] श्री पूज्य गुरुवर्य प्रेमानंद जी महाराज जी विश्व के मानवता कल्याण के लिए पर्वत इतने बढ़े ज्ञान का अमृत दे रहे है.. वेबसाइट की माध्यम से वही ज्ञान प्रसार लोगों को देना का काम एक चींटी की भाती प्रयास कर रहा हूं.. श्री गुरुवर्य महाराज के ज्ञान प्रसार के लिए बल प्रदान करे..राधे..राधे..

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