क्रोध पर विजय और भगवान में समर्पण: प्रेमानंद महाराज जी के अनमोल विचार

क्रोध, मानव जीवन का एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति के आत्मिक और मानसिक विकास में बाधा बनता है। एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज जी से यही प्रश्न पूछा कि वह राधा नाम का जप करता है, सभी व्यसनों को त्याग चुका है, लेकिन क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा। इस पर प्रेमानंद महाराज जी ने जो उत्तर दिया, वह हम सभी के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।

क्रोध पर कैसे पाए नियंत्रण?

प्रेमानंद महाराज जी ने कहा कि यदि क्रोध अभी भी बना हुआ है, तो इसका अर्थ है कि मोह और आसक्ति पूरी तरह से नहीं गई है। जब तक व्यक्ति सांसारिक मोह में बंधा रहेगा, तब तक विकार भी बने रहेंगे। क्रोध का मूल कारण किसी भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से अत्यधिक लगाव है।

भगवान में समर्पण ही मुक्ति का मार्ग

महाराज जी ने स्पष्ट कहा कि अब अंतिम समय आ चुका है, इसलिए खुद को समेट लो और केवल भगवान में समर्पित कर दो। जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों से मुक्त होकर संपूर्ण रूप से भगवान के चिंतन में लग जाता है, तब उसे न मोह रहता है, न क्रोध।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है:

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।”

अर्थात, जो व्यक्ति संपूर्ण रूप से मेरा चिंतन करता है और अनन्य भक्ति में लीन रहता है, उसके योग और क्षेम की चिंता मैं स्वयं करता हूँ।

क्रोध से मुक्त होने के उपाय

  1. भगवान का निरंतर स्मरण करें – जब भी क्रोध आए, भगवान का नाम लें और उनकी लीलाओं का स्मरण करें।
  2. मोह और आसक्ति को त्यागें – जब तक व्यक्ति सांसारिक मोह में रहेगा, क्रोध उत्पन्न होता रहेगा।
  3. सकारात्मक विचारों का अभ्यास करें – किसी भी नकारात्मक परिस्थिति में धैर्य बनाए रखें और हर घटना को भगवान की इच्छा मानें।
  4. गीता का अध्ययन करें – श्रीमद्भगवद्गीता जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान देती है।
  5. संतों और महापुरुषों का सत्संग करें – नियमित सत्संग से मन की चंचलता समाप्त होती है।

निष्कर्ष

यदि हम सच में भगवान के सच्चे भक्त बनना चाहते हैं, तो हमें क्रोध, मोह और आसक्ति से पूरी तरह मुक्त होना होगा। प्रेमानंद महाराज जी ने स्पष्ट कहा कि अब बच्चों को भगवान को समर्पित कर दो और स्वयं भगवान के चिंतन में लीन हो जाओ। भगवान स्वयं हमारे योगक्षेम का वहन करेंगे और हमारे परिवार का ध्यान रखेंगे। केवल विश्वास और समर्पण ही इस पथ पर आगे बढ़ने का एकमात्र उपाय है।

“क्रोध को छोड़ो, भगवान में समर्पित हो जाओ और जीवन में शांति का अनुभव करो।”

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