“कोई गाली दे, अपमान करे, तो भी मन में शांति बनी रहे – यही सच्चा अध्यात्म है।”
यह बात कहने में आसान है लेकिन जब कोई सामने खड़ा होकर हमें अपशब्द कहे या नीचा दिखाने की कोशिश करे, तो मन में पीड़ा होना स्वाभाविक है। ऐसे में श्री प्रेमानंद महाराज जी ने एकांत में हुई एक सुंदर वार्ता के दौरान इसका समाधान बहुत ही सरल और गूढ़ रूप से बताया।
सवाल: “महाराज जी, लोगों की बातों का बुरा न लगे और उनका असर न हो, इसका कोई उपाय बताइए।”
इस सवाल के उत्तर में श्री प्रेमानंद महाराज जी ने उदाहरण देते हुए कहा:
“अगर एक पागल आदमी आपको गाली दे या ईंट मार दे, तो क्या आप बुरा मानते हो? नहीं ना? क्योंकि आप जानते हो कि वो पागल है।”
पंचभूत देहाभिमानी जीव = असली पागल
महाराज जी ने समझाया कि यह शरीर पांच तत्वों – पंचभूत – से बना है। जो जीव इन पंचभूतों में फँसकर काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर जैसे विकारों में लिप्त हो जाता है, वो असल में “पागल” ही है।
वो कुछ भी बोल सकता है, कुछ भी कर सकता है।
और हम, जो अध्यात्म के पथ पर हैं, हमें चाहिए कि हम ऐसे “पागल” जीवों से न उलझें।
“अगर कोई बदबूदार आदमी पास में खड़ा हो और बदबू दे, तो क्या आप भी बदबू देने लगते हो? नहीं ना? आप खुद खुशबूदार बने रहो – यही अध्यात्म है।”
महात्मा और भक्त का स्वभाव
श्री महाराज जी कहते हैं:
- कोई गाली दे, तो मुस्कुरा देना।
- कोई अपमान करे, तो चुप रह जाना।
- कोई ताना मारे, तो मन में भगवान का स्मरण करना।
“इत्र लगाने वाला खुशबू देगा, और गंदगी से भरा हुआ व्यक्ति बदबू – बस यही समझ लो कि गाली देने वाले के पास गाली की ही सामग्री है।”
अगर हम भी पलट कर गाली दें, तो फिर क्या फर्क रहा?
अगर कोई एक गाली दे और हम दो गाली वापस दें,
अगर वो थप्पड़ मारे और हम घूंसा मार दें –
तो फिर हम और उसमें क्या फर्क हुआ?
“वही तो अध्यात्म है – सामने वाले के व्यवहार से अप्रभावित रहना। मन की शांति बनाए रखना।”
गाली सुनकर भी आनंद में रहना – यही अध्यात्म है
श्री प्रेमानंद महाराज जी ने आगे कहा कि जो व्यक्ति अंदर से परमात्मा में डूबा हो, उसका आनंद कभी घटता नहीं। अगर बाहर से कोई अपमान करे, चोट दे – तो भी वो अंदर से मुस्कुराता है।
“बाहर गाली पड़ रही है, लेकिन भीतर राम नाम की गूंज है – यही तो अध्यात्म है।”
हम क्यों दुखी होते हैं?
क्योंकि हम यह मान लेते हैं कि सामने वाला जो कह रहा है, वो सच है।
हम उसकी बातों को अपने आत्म-सम्मान से जोड़ लेते हैं।
लेकिन महाराज जी कहते हैं:
“वो कुछ भी कहे – वो उसका बोझ है, उसे मत उठाओ।”
ठाकुर जी हमें बुलेटप्रूफ बना रहे हैं
महाराज जी ने बहुत सुंदर उदाहरण दिया:
“एक शीशा है, उस पर कंकड़ मारो – टूट जाएगा।
लेकिन उसी शीशे को बार-बार गरम और ठंडा करते हुए
बुलेटप्रूफ बनाया जाए, तो गोली भी मारे – नहीं टूटेगा।”
ठीक वैसे ही ठाकुर जी हमारे जीवन में कभी अनुकूल, कभी प्रतिकूल परिस्थितियाँ लाते हैं – ताकि हम मजबूत बनें।
“अगर कोई बोले और हम टूट जाएँ – तो हम अब भी शीशा हैं।
लेकिन कोई कुछ भी बोले, और हम मुस्कुरा दें – तो समझ लो, हम बुलेटप्रूफ हो चुके हैं।”
प्रतिकूलताओं से डरना नहीं, उन्हें स्वीकार करना
- कोई बुरा बोले – तो मुस्कुरा दो।
- कोई ताना मारे – तो ईश्वर का नाम लो।
- कोई पीड़ा दे – तो उसे भगवान की परीक्षा समझो।
क्योंकि वही भगवान हमें दृढ़ बना रहे हैं।
“सहन करते-करते, सहते-सहते… हम भगत, गृह, तन, गुरु, हितगार – सब के प्रिय बन जाते हैं।”
क्या करें जब कोई अपमान करे?
- नाम जप करें – ताकि मन शांत रहे।
- सत्संग सुनें – ताकि बुद्धि सही निर्णय ले सके।
- प्रार्थना करें – ताकि सहनशक्ति बढ़े।
- सोचें कि वो पागल है – ताकि बात मन में न लगे।
- भगवान का धन्यवाद करें – कि उन्होंने एक नई परीक्षा का अवसर दिया।
निष्कर्ष: जब हृदय बुलेटप्रूफ हो जाए
जब कोई भी गाली, ताना, अपमान हमें प्रभावित न करे,
जब हम हँसते हुए उसे भी क्षमा कर दें,
जब हमारे हृदय में कोई कटुता न हो –
तब समझिए कि हमने सच्चा अध्यात्म पाया है।
डिस्क्लइमर [ disclaimer ] श्री पूज्य गुरुवर्य प्रेमानंद जी महाराज जी विश्व के मानवता कल्याण के लिए पर्वत इतने बढ़े ज्ञान का अमृत दे रहे है.. वेबसाइट की माध्यम से वही ज्ञान प्रसार लोगों को देना का काम एक चींटी की भाती प्रयास कर रहा हूं.. श्री गुरुवर्य महाराज के ज्ञान प्रसार के लिए बल प्रदान करे..राधे..राधे..
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